Thursday, January 14, 2010

नया साल

प्रिय दोस्तों,

१३ जनवरी २०१० को समाचार पत्र "डेली न्यूज़" में मेरी ग़ज़ल "नया साल" प्रकाशित हुई। रचना आपके समक्ष प्रस्तुत है। आपके सुझाव एवं विचार सादर आमंत्रित हैं।



आपका,
अश्विनी बग्गा।

Saturday, January 9, 2010

भक्ति की राह

मकरन्दी लाल का रोज़ का नियम था, हर सुबह नहा धो कर तैयार होता और पहुँच जाता शिव मंदिर। बड़े प्रेम से प्रभु की पूजा अर्चना करता, जल चढ़ाता और प्रार्थना करता की उसके पास वह सभी हो जो वह चाहता है। तत्पश्चात अपनी साईकिल उठता और काम पर चल देता। उसकी भक्ति देख कर प्रभु प्रसन्न हुए और उसे तरक्की दिला दी। मकरन्दी ने फटफटी खरीद ली और साईकिल को किनारा कर दिया।

उसका रोज़ का नियम जारी रहा, पूजा पाठ के बाद वही मन्नत मांगता जो पहले माँगा करता था। कुछ समय बाद प्रभु को लगा शायद इससे इसका काम नहीं चल रहा, चलो थोडा भला और कर दिया जाये। कुछ समय पश्चात् मकरन्दी की दूसरी नौकरी लगी। अच्छी तनख्वाह हो गयी परन्तु काम का बोझ और समय दोनों बढ़ गया। एक छोटा घर खरीदा और एक चोपहिया वाहन भी ले लिया।

समय की कमी हो गयी, काम बढ़ गया, दूरी ज्यादा हो गयी। इसी वजह से मकरन्दी की दिनचर्या में तबदीली होने लगी। कुछ समय के बाद वह मंदिर भी यदा कदा जाने लगा। इस बात का अहसास प्रभु को हुआ की जिस वजह से उसने तरक्की की है उसी वजह को वह अनदेखा कर के जीवन व्यापन करने में जुटा हुआ है। प्रभु ने सोचा, लगता है मकरन्दी को याद दिलाने का सही समय आ गया है।

एक दिन मकरन्दी सुबह अपने दफ्तर जाने के लिए मंदिर के सामने से तेजी से निकल गया। प्रभु ने जाते हुए देख लिया। जैसे ही वह चौराहे पर पहुंचा तभी अचानक सामने से आते एक ट्रक ने उसे टक्कर मार दी। मकरन्दी की कार तहस नहस हो गयी। पर ये चमत्कार ही था की मकरन्दी सही सलामत था। वह कैसे बचा कोई नहीं जनता था। सारा तमाशा प्रभु देख रहे थे, व अन्दर ही अन्दर मुस्कुरा भी रहे थे। "चलो अब तो फिर लौट कार आएगा मेरे द्वार, देखता हूँ।"

अगले ही दिन मकरन्दी मंदिर में हाजिर हो गया। वह हाथ जोड़े भागवान की प्रतिमा के आगे खड़ा था। तभी उसने बोलना शुरू किया - "भगवन, छोड़ना नहीं उस पापी दुष्ट को। मेरी नई नवेली कार को उसने एक मिनट में कबाड़ में तब्दील कर दिया। उसकी रिपोर्ट दर्ज करा दी है। कड़ी से कड़ी सजा दिलवाना उसे हाँ। और प्रभु मैंने बीमा कंपनी में भी फाइल लगवा दी है। थोडा जल्दी करना प्रभु क्लेम फटाफट पास करवाना। अब खटारा फटफटिया पर जाना मेरी शान को शोभा नहीं देता। आखिर दफ्तर में मेरा भी कुछ रुतबा है। याद रखना प्रभु, उस ट्रक ड्राईवर को बख्शना मत। ठीक है अब चलता हु प्रभु। "

मकरन्दी लाल सब कह कर निकल लिया। भगवान का मस्तिष्क चकराने लगा। वो सोच में पड़ गए। जिस इन्सान की इतनी भीषण दुर्घटना हो और वह बच जाये तो बजाये शुक्रिया अदा करने के वह ट्रक ड्राईवर का बुरा सोच रहा है। क्लेम के लिए चिंतित है, बार बार ये कह रहा है कि उसे छोड़ना मत। उफ़ मैंने भी किसकी मदद की। किसे वापस बुलाने चला था। अब तो उसका मन ही बदल गया है, मैं चाह कर भी उसे दुबारा भक्ति के रास्ते पर नहीं ला सकता।

अंततः प्रभु ने मकरन्दी को उसी के हाल पर छोड़ दिया।