Wednesday, February 29, 2012

5 साल

निकल रहे हैं बिलों से
सीधे उतर रहे हैं दिलों में

सातवें मौसम की बयार है
दिग्गज चुनावों के लिए तैयार हैं

रैली, सभाओं मिलने जुलने का दौर है
प्रचार, परचा, झंडे, भाषणों का शोर है

फुटपाथ पर बैठा फटेहाल भिखारी बच्चा
पूछ रहा है...
ये सब क्या हो रहा है,
रोटी, कपडा कम्बल कौन दे रहा है?

बेटा, हम लाचार हैं
देने वाले तो अपने सरकार हैं

ये सरकार कहाँ से आते हैं
हमें रोज़ क्यों नहीं खिलाते हैं?

ये सिर्फ सीज़न में रोट खिलाते हैं
उसी से ये अपने वोट कमाते हैं

बाकी दिन हड़ताल, बन्द, चक्का जाम कराते हैं
इसी से पूरे देश की नैय्या चलाते हैं

जो मिल गया है समेट लो वरना ठगे रह जाएँगे
अपने बिलों से ये पाँच साल बाद लौटकर आयेंगे

Tuesday, February 28, 2012

कोचिंग सेंटर

हमारे पुत्र हमसे कर बोले
पिताजी, इक राज़ की बात खोले

हमने कहा सुनाइए
क्या राज़ की बात है बताइए।

इस एग्जाम में सबका रहा बोलबाला
पर मेरा हो गया है मुह काला।

मैथ्स का साइन कॉज थीटा
फिजिक्स का गामा अल्फा बीटा
पल्ले कुछ नहीं पड़ा, बहुत माथा पीटा

अब कोचिंग से ही किनारा है
वही इक आखिरी सहारा है

हमने झाड़ा...
सारा दिन फ़ोन पर लड़कियों से बतियाते हो
सारी मैथ्स फिजिक्स वहीँ क्यों लगाते हो।

हार कर हम कोचिंग सेंटर पहुँच गए
इतने पप्पुओ को साथ देख दंग रह गए

मास्टर साहब बोले ...
यहाँ पढ़ाने वाले शिक्षक बहुत पुराने हैं
आप गिनिये फीस में कितने शुन्य लगाने हैं

मैंने फ़रमाया, ये बहुत ज्यादा है
यहाँ पढ़ाने में भला क्या फायदा है

बोले...
हमेशा हम नए रिकॉर्ड बनाते हैं और
हर वर्ष सैकड़ो पप्पुओं को पास कराते हैं