निकल रहे हैं बिलों से
सीधे उतर रहे हैं दिलों में।
सातवें मौसम की बयार है
दिग्गज चुनावों के लिए तैयार हैं।
रैली, सभाओं मिलने जुलने का दौर है
प्रचार, परचा, झंडे, भाषणों का शोर है।
फुटपाथ पर बैठा फटेहाल भिखारी बच्चा
पूछ रहा है...
ये सब क्या हो रहा है,
रोटी, कपडा कम्बल कौन दे रहा है?
बेटा, हम लाचार हैं
देने वाले तो अपने सरकार हैं।
ये सरकार कहाँ से आते हैं
हमें रोज़ क्यों नहीं खिलाते हैं?
ये सिर्फ सीज़न में रोट खिलाते हैं
उसी से ये अपने वोट कमाते हैं।
बाकी दिन हड़ताल, बन्द, चक्का जाम कराते हैं
इसी से पूरे देश की नैय्या चलाते हैं।
जो मिल गया है समेट लो वरना ठगे रह जाएँगे
अपने बिलों से ये पाँच साल बाद लौटकर आयेंगे।
सीधे उतर रहे हैं दिलों में।
सातवें मौसम की बयार है
दिग्गज चुनावों के लिए तैयार हैं।
रैली, सभाओं मिलने जुलने का दौर है
प्रचार, परचा, झंडे, भाषणों का शोर है।
फुटपाथ पर बैठा फटेहाल भिखारी बच्चा
पूछ रहा है...
ये सब क्या हो रहा है,
रोटी, कपडा कम्बल कौन दे रहा है?
बेटा, हम लाचार हैं
देने वाले तो अपने सरकार हैं।
ये सरकार कहाँ से आते हैं
हमें रोज़ क्यों नहीं खिलाते हैं?
ये सिर्फ सीज़न में रोट खिलाते हैं
उसी से ये अपने वोट कमाते हैं।
बाकी दिन हड़ताल, बन्द, चक्का जाम कराते हैं
इसी से पूरे देश की नैय्या चलाते हैं।
जो मिल गया है समेट लो वरना ठगे रह जाएँगे
अपने बिलों से ये पाँच साल बाद लौटकर आयेंगे।
really interesting.. and i totally agree with you.. Good work Sir!
ReplyDeleteGood one Ashwini :-)
ReplyDeletelovely
ReplyDeletereally nice
ReplyDeleteare sarkar aap ye kataksh kis pe kar rhe ho
ReplyDeletegud one :)
ReplyDeleteTruth of India...good
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