Tuesday, June 4, 2013

टूट कर इस कदर बिखर गया

टूट कर इस कदर बिखर गया
पत्थर जब आईने के घर गया

दिन रात कुछ जला इस तरह
खाक हुस्न कुछ और निखर गया

दिल में बसा रहा खंजर की तरह
उम्र के साथ साथ गहरा उत गया

ढूँढता किसे हूँ वीरान गलियों में
दोस्ती का ख्वाब उसको अखर गया

-- अश्विनी ग्गा
04 जून 2013